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भाषांतर इस पखवारे देशांतर

कविताएँ
एस. जोसफ
अनुवाद -
मिनीप्रिया आर.

हाथी

जंगल का हाथी पानी की मछली है।
पानी से मछली पकड़ी जाती है
पानी वहीं रहता है।
जंगल से हाथी पकड़ा जाता है।
जंगल वहीं रहता है।
मछली से व्यंजन बनाया जाता है, भूना जाता है
हाथी से लट्ठा उठाया जाता है
उसे सजा-धजाकर
त्यौहार में खड़ा किया जाता है
पानी हिलोरें भरता रहता है -
हाथी से वंचित जंगल
बाहर आता है
आदमी भागने लगते हैं, कराहते हैं।
जंगल का हाथी पानी की मछली नहीं।

पानी

पहले हमारे यहाँ कुएँ नहीं थे।
पानी के लिए यजमानों के घर जाना होता था।
वे अपने आँगन से बाल्टी में पानी लेते थे
हमें नीचे से खजूर के सूखे-पत्तों से पानी लेना था।
नहीं तो खेतों के बीच की नालियों में से।
एक घड़ा पानी के लिए जानेवाली अम्मा या नानी
आँगन से हमारी पुकार की नोक पर
बँधी हुई भी होती थी।
गाँव की बातों में उन्हें बीतते समय का अहसास नहीं होता था।
फिर काम के बाद
दारु-भरा घड़ा जैसा चाच्चन* आएँगे।
पानी गरम नहीं कहकर
अम्मा से झगड़ा करेंगे, पानी उड़ेल देंगे।
मार, पीट, लात
पड़ोसी भाग आएँगे।
तब मुझे साथ लेकर, मोमबत्ती जलाकर
चाच्चन का पानी के लिए रवाना संपन्न होता।
नाटक के समाप्त न होने से
पर्दे की डोरी पैर में बाँधकर रात
सो जाती थी।

आज हमारे यहाँ कुआँ है।
पानी नहीं।
कुआँ पलटकर हमने
चार घड़िया पानी निचोड़ लिया।

* पिताजी के लिए प्रयुक्त शब्द

बहन की बाइबिल

बहन की बाइबिल में होते हैं :
धागा-टूटा राशन कार्ड
कर्ज लेने का आवेदन पत्र
सूदखोरों का कार्ड
उत्सव व पुण्यदिनों के नोटिस
भाई के बच्चे का फोटो
नन्हों की टोपी सिलाने की विधि लिखा कागज का टुकड़ा
एक सौ रुपए का नोट
एस.एस.एल.सी. का बुक।

बहन की बाइबिल में नहीं है :
पुरोवाक्
पुराना नियम, नया नियम
भू-नक्शे
उसका लाल आवरण।

पहचान पत्र

पढ़ाई के दिनों में
एक लड़की हँसती हुई आई

उसके भात और चूरा* मछली-व्यंजन पर
हमारे हाथ मिलते रहे
हमने एक बेंच पर
हिंदू-क्रिश्चियन परिवार बसाए।

मैं नेरुदा की कविताएँ पढ़ता रहा
उसी बीच मेरा पहचान पत्र खो गया

मैंने देखा। पहचान पत्र देकर उसने कहा -
लाल स्याही में लिख रखा है इसमें
तेरे स्टाईपेंड लेने का हिसाब।

अब आमने-सामने बैठते-भूलते लड़का-लड़की को
मैं देखता ही नहीं।
कुछ समय बाद वे बिछुड़ जाएँगे
फिर उनके मिलने पर भी गनीमत नहीं -
उनके पहचान पत्रों पर लाल स्याही में लिखे गए
हिसाब नहीं होंगे।

कविताएँ
श्रीप्रकाश शुक्ल

अक्सर कहा जाता है कि कविता दुखी आत्माओं का संबोधन है लेकिन असल में यह विक्षुब्ध आत्माओं का संबोधन हुआ करती है। दुख का होना एक बात है इसके अहसास का होना बिलकुल दूसरी बात। इस अहसास से ही विक्षोभ जन्म लेता है तब प्रतिरोध की कविताएँ लिखी जाती हैं। और यही अहसास जब भाववादी होकर नियतिवादी हो जाता है तब उत्सवधर्मी कविताएँ लिखी जाती हैं। यहाँ नियतिवाद का मतलब प्रदत्त हालात से समझौता करना और आत्मलीन होकर मुक्ति का गीत गाना है जो असल में कहीं होती नहीं। मुझे प्रसन्नता होती है जब मेरी कविताओं में विक्षोभ की प्रतिरोधी चेतना के तत्व दिखाई देते हैं लेकिन यदि कभी कभी इसके बीच भाववाद की उत्सवधर्मी कविताएँ दिखाई दे जाती हैं तो इसे मेरे अतिशय व्याकुल मन को नियंत्रित करने की एक कोशिश के तौर पर देखा जाना चाहिए।

आत्मकथ्य
श्रीप्रकाश शुक्ल
मेरे लिए कविता

धरोहर
पं. अंबिकाप्रसाद वाजपेयी
सरस्वती के आविर्भाव के समय हिंदी की अवस्था

श्रद्धांजलि
कृपाशंकर चौबे
खामोश हो गई साहित्य अध्यापन व आलोचना की मुखर आवाज

विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन के हिंदी विभाग के प्रोफेसर व अध्यक्ष डा. शैलेंद्र कुमार त्रिपाठी का बीती 27 जनवरी 2015 को गोरखपुर में देहांत हो गया। वे कुछ समय से कैंसर से पीड़ित थे। एक दिसंबर 1965 को देवरिया के बरहज में जन्मे शैलेंद्र कुमार त्रिपाठी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एमए किया था और विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन से पी.एचडी.। उसके बाद अध्यापन को उन्होंने अपनी वृत्ति बनाया। वे विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन के हिंदी विभाग में 1997 से ही अध्यापन कर रहे थे। डा. शैलेंद्र कुमार त्रिपाठी कुछ साल पहले ही शांतिनिकेतन में प्रोफेसर बने थे और कुछ माह पहले अध्यक्ष। शांतिनिकेतन के हिंदी विभाग में वे ऐसे अध्यापक थे जो हमेशा लिखने-पढ़ने और पढ़ाने में लगे रहते थे। पिछले साल जब पता चला कि उन्हें कैंसर है और कोलकाता के टाटा कैंसर अस्पताल में जब उन्हें भर्ती किया गया तो अस्पताल के बेड से भी वे विभाग की चिंता करते थे। शैलेंद्र के निधन के साथ ही हमने हिंदी भाषा साहित्य के एक प्रतिबद्ध अध्यापक और अत्यंत संभावनाशील साहित्य समालोचक को खो दिया है।

पाँच कहानियाँ
अल्पना मिश्र
मिड डे मील
उपस्थिति
कथा के गैरजरूरी प्रदेश में
अँधेरी सुरंग में टेढ़-मेढ़े अक्षर
बेतरतीब

भाषांतर - कहानी
संतोख सिंह धीर
दो चिट्ठियाँ
अनुवाद : नेहा चौहान

आलोचना
पंकज पराशर
पितृसत्ता, स्त्री और समकालीन जीवन-यथार्थ
(संदर्भ : अल्पना मिश्र की कहानी ‘स्याही में सुर्खाब के पंख’)

स्मरण
भारती गोरे
भक्ति मार्ग की बहुज्ञानी उपेक्षिता - संत जनाबाई

सिनेमा
विमल चंद्र पांडेय
अद्भुत संयोगों से भरी अद्भुत प्रेम कहानी :
मैप ऑफ द ह्यूमन हार्ट
टूटते सपने का एक बीज और गौरैयों का गीत :
द साँग ऑफ द स्पैरोज

कविता संग्रह
अर्पण कुमार
मैं सड़क हूँ

लंबी कविताएँ
गंगाशतक : हरेराम द्विवेदी
उज्जैन से राजनांदगाँव व्हाया नागपुर : मोहन सगोरिया

निद्रारत सुंदरी
सेमुअल रोजर्स
अनुवाद -
किशोर दिवसे

स्वर्ग के स्वप्न देखती है निद्रारत सुंदरी
हँसती हैं आँखें उसकी पलकों में छिपी
गुलाबी ओंठ मुस्काते हैं मीठी मुस्कान
और थरथराने लगते है गहरी साँसों से
रक्तिम कपोल हैं लज्जा के चुंबन से
हंसिनी का भास सुराहीदार गर्दन से
स्पर्श करता है प्रणय अदृश्य ओठों से
ओंठों ही ओंठों में गुनगुनाती है कैसे
जानना चाहता हूँ पर डर है जैसे

विस्मृत है देहभान, देहों के मेल से
सिसकती है वह कसमसा कसमसाकर
संगमरमरी हाथ हैं धवल गुंबदों पर
हिंडोले में झूलती है अब वह निद्रारानी के
जैसे कोई फरिश्ता खोया हो विश्रांति में
खोई रहो स्वप्नों में निद्रालीन इसी तरह
स्वर्ग के नियंत्रण में है भावनाओं का बहर
अदृश्य लोक में छिपा राज दिव्य स्वप्न का
मीठी मुस्कान, तुम्हारी कसमसाहट का

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