अक्सर कहा जाता है कि कविता दुखी आत्माओं का संबोधन है लेकिन असल में यह विक्षुब्ध
आत्माओं का संबोधन हुआ करती है। दुख का होना एक बात है इसके अहसास का होना बिलकुल दूसरी
बात। इस अहसास से ही विक्षोभ जन्म लेता है तब प्रतिरोध की कविताएँ लिखी जाती हैं। और
यही अहसास जब भाववादी होकर नियतिवादी हो जाता है तब उत्सवधर्मी कविताएँ लिखी जाती हैं।
यहाँ नियतिवाद का मतलब प्रदत्त हालात से समझौता करना और आत्मलीन होकर मुक्ति का गीत
गाना है जो असल में कहीं होती नहीं। मुझे प्रसन्नता होती है जब मेरी कविताओं में विक्षोभ
की प्रतिरोधी चेतना के तत्व दिखाई देते हैं लेकिन यदि कभी कभी इसके बीच भाववाद की उत्सवधर्मी
कविताएँ दिखाई दे जाती हैं तो इसे मेरे अतिशय व्याकुल मन को नियंत्रित करने की एक कोशिश
के तौर पर देखा जाना चाहिए।
आत्मकथ्य
श्रीप्रकाश शुक्ल
मेरे लिए कविता
धरोहर
पं. अंबिकाप्रसाद वाजपेयी
सरस्वती के आविर्भाव के समय हिंदी की अवस्था
विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन के हिंदी विभाग के प्रोफेसर व अध्यक्ष डा. शैलेंद्र कुमार त्रिपाठी का बीती 27 जनवरी 2015 को गोरखपुर में देहांत हो गया।
वे कुछ समय से कैंसर से पीड़ित थे। एक दिसंबर 1965 को देवरिया के बरहज में जन्मे शैलेंद्र कुमार त्रिपाठी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एमए
किया था और विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन से पी.एचडी.। उसके बाद अध्यापन को उन्होंने अपनी वृत्ति बनाया। वे विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन के
हिंदी विभाग में 1997 से ही अध्यापन कर रहे थे। डा. शैलेंद्र कुमार त्रिपाठी कुछ साल पहले ही शांतिनिकेतन में प्रोफेसर बने थे और कुछ माह पहले अध्यक्ष।
शांतिनिकेतन के हिंदी विभाग में वे ऐसे अध्यापक थे जो हमेशा लिखने-पढ़ने और पढ़ाने में लगे रहते थे। पिछले साल जब पता चला कि उन्हें कैंसर है और कोलकाता के टाटा
कैंसर अस्पताल में जब उन्हें भर्ती किया गया तो अस्पताल के बेड से भी वे विभाग की चिंता करते थे। शैलेंद्र के निधन के साथ ही हमने हिंदी भाषा साहित्य के एक
प्रतिबद्ध अध्यापक और अत्यंत संभावनाशील साहित्य समालोचक को खो दिया है।
पाँच कहानियाँ
अल्पना मिश्र
मिड डे मील
उपस्थिति
कथा के गैरजरूरी प्रदेश में
अँधेरी सुरंग में टेढ़-मेढ़े अक्षर
बेतरतीब
भाषांतर - कहानी
संतोख सिंह धीर
दो चिट्ठियाँ
अनुवाद : नेहा चौहान
आलोचना
पंकज पराशर
पितृसत्ता, स्त्री और समकालीन जीवन-यथार्थ
(संदर्भ : अल्पना मिश्र की कहानी ‘स्याही में सुर्खाब के पंख’)
स्मरण
भारती गोरे
भक्ति मार्ग की बहुज्ञानी उपेक्षिता - संत जनाबाई
सिनेमा
विमल चंद्र पांडेय
अद्भुत संयोगों से भरी अद्भुत प्रेम कहानी :
मैप ऑफ द ह्यूमन हार्ट
टूटते सपने का एक बीज और गौरैयों का गीत :
द साँग ऑफ द स्पैरोज
कविता संग्रह
अर्पण कुमार
मैं सड़क हूँ
लंबी कविताएँ
गंगाशतक : हरेराम द्विवेदी
उज्जैन से राजनांदगाँव व्हाया नागपुर : मोहन सगोरिया
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